प्रभा खेतान फ़ाउंडेशन के कार्यक्रम कलम का आयोजन रायपुर में हुआ। जिसमें अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका गीतांजलि श्री से आँचल ने बातचीत की। बातचीत की शुरुआत में आँचल ने पूछा कि आपको कैसा महसूस होता है यह सोचकर कि अपनी कहानी को आप जैसा रूप देना चाहती थी हुबहू वैसा ही रूप इस कहानी का बनकर सामने आया इसने आपको ऐसी लोकप्रियता दिलवाई। जवाब में श्री ने कहा कि लेखक को पूरी तरह से यह मालूम नहीं होता है कि उसकी रचना कैसी बनेगी। जब ऐसा होता है तो आप भी चकित हो जाते हैं और आपके लिए भी वह एक नई चीज़ ही होती है। फिर जब पाठक उसको पढ़कर अपने अपने ढंग से देखते हैं तो आप भी अपनी रचना को रिडिस्कवर करते हैं।
रेत समाधि के बारे में पूछे गए एक सवाल के जवाब में लेखिका ने कहा कि यह किताब जिस तरह की बहुलता को लेकर चलती है जिसमें हर चीज़ का हर दूसरी चीज़ से नाता है। हर चीज़ में जब स्मृति आ जाती है तो वह उसको ज़िंदा कर देती है। मान लीजिए इसी कुर्सी पर पहले मेरे पूर्वज बैठे थे या मेरे गुरुजन बैठे थे तो मेरा इस पर बैठना उनसे जुड़ जाता है। फिर यह कुर्सी केवल कपड़ा या लकड़ी नहीं रह जाती। यह बहुलता की सोच है। हम सब जानते हैं इस सोच पर आज पूरे विश्व में ख़तरा मंडरा रहा है। एक तरफ़ यह दुनिया बहुत खुली है तो दूसरी तरफ बहुत संकीर्ण होती गई है। इस तरह की सोच मेरे अंदर भरी हुई थी जिसको पन्नों पर उकेरने में बहुत मजा भी आया और तकलीफ़ भी हुई कि कहाँ जा रही है ये दुनिया।
रेत समाधि की अनुवाद यात्रा पर पूछे गए सवाल के जवाब में श्री ने कहा कि इसका पहला अनुवाद फ्रेंच भाषा में जानी-मानी अनुवादक ऐनी मोंतो ने किया। बाद में लंदन के एक प्रकाशक ने मुझे मेल के माध्यम से इस उपन्यास के अंग्रेज़ी अनुवाद के लिए अनुमति माँगी। मेरी अनुमति के बाद अनुवाद के लिए डेज़ी रॉकवेल का नाम आया। मेरी उनकी बातचीत सिर्फ़ मेल के माध्यम से होती थी। बुकर पुरस्कार के आयोजन के पहले हम कभी मिले भी नहीं थे।
आँचल ने जब उनसे पूछा कि आप किसको प्राथमिकता देती हैं- प्रतिष्ठित पुरस्कार या यूनिवर्सल अपील। जवाब में श्री ने कहा कि इन दोनों ने मेरे क्षितिज का विस्तार किया लेकिन ऐसा नहीं है मैं यूनिवर्सल अपील पाने के लिए लिखूँगी। आप अपने अंदर के किसी उधेड़बुन या उहापोह से उबरने के लिए लिखते हैं। इतिहास और साहित्य पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि दोनों का प्रोटोकॉल बिलकुल अलग होता है। इतिहास जब किसी विषय से जूझता है तो वह उसको मंजिल तक लेकर जाता है। जैसे प्रथम विश्वयुद्ध कई कारणों से शुरू हुआ। इतिहास पूरी कहानी कहता है। वहीं साहित्य में सवाल उठाए जाते हैं, दिशाएँ दिखाई जाती हैं। लेकिन ज़रूरी नहीं कि आप उनके जवाब भी दें। साहित्य का यही खुलापन मुझे आकर्षित करता है।
बातचीत के बाद श्री ने भाषा और साहित्य को लेकर श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए। इस जीवंत सत्र का संचालन और धन्यवाद ज्ञापन सृष्टि त्रिवेदी ने किया। कलम हिंदी भाषा को प्रोत्साहित करने के लिए प्रभा खेतान फ़ाउंडेशन का एक अनूठा प्रयास है। अब तक दुनिया भर के 40 से अधिक शहरों में कलम के 600 से अधिक सत्र हो चुके हैं। जयपुर और पटना से कलम की शुरुआत हुई थी और आज इसका विस्तार दुनिया भर में हो गया है। कलम का आयोजन श्री सीमेंट की सीएसआर गतिविधि तहत किया जाता है।