प्रभा खेतान फ़ाउंडेशन के बहुचर्चित कार्यक्रम ‘कलम’ का उदयपुर में आयोजन किया गया, जिसका आयोजन श्री सीमेंट के सहयोग से होता है। इस बार आयोजन में जाने माने युवा कवि-गद्यकार गीत चतुर्वेदी से उनके उपन्यास ‘सिमसिम’ पर अहसास विमन श्रद्धा मुर्डिया ने बात की।
चतुर्वेदी से जब अका मोडिया ने यह सवाल किया कि वह अवसरों के शहर मुंबई में पले बढ़े लेकिन बाद में भोपाल आकर बस गए तो इसका क्या कारण था? जवाब में चतुर्वेदी ने कहा कि मुंबई पानी का शहर है और भोपाल भी पानी का शहर है। शायद भोपाल के पानी ने मेरे अंदर मुंबई के पानी को पहचान लिया इसलिए मैं वहीं का हो गया। उन्होंने कहा कि शायद वह उदयपुर भी इसीलिए आए क्योंकि यह भी पानी का शहर है।
चतुर्वेदी से जब यह पूछा गया कि आपको कब ऐसा लगा कि अब मैं लेखक बनूँगा? उन्होंने जवाब में कहा कि उनका बचपन साहित्य और संगीत के बीच आवागमन में बीता। उनके पिता लिखते थे और संगीत में भी दख़ल रखते थे। वह तबला और बांसुरी बहुत अच्छा बजाते थे। मेरी पहली रचना 13 साल की उम्र में बच्चों की पत्रिका टिंकल में छपी। तब मेरे अंदर यह आत्मविश्वास आया कि भाषा के साथ, अभिव्यक्ति के साथ मेरा रिश्ता हो सकता है। इसमें मेरी बड़ी बहन ने बहुत प्रेरित किया। जिनका निधन 22 साल की उम्र में उस साल हो गया जब मुंबई में दंगे हो रहे थे। उन्होंने मरने के पहले मुझे एक पेंसिल दी थी और कहा था कि जो भी लिखना इस पेंसिल से लिखना। वह मेरे जीवन का टर्निंग पाइंट था।
जब उनसे पूछा गया कि क्या लेखन के लिए इस तरह का दर्द, इस तरह का कोई आक्रोश ज़रूरी होता है? उनका जवाब था कि मनुष्य के तौर पर हमारे सुख को हमारे दुःख परिभाषित करते हैं। हमारी निर्मिति हमारे द्वारा खेले गए दुखों के द्वारा होती है। कवि और कलाकार हृदय का सगा भाई होता है इसलिए उसका इन दुखों से करीबी रिश्ता होता है। पिकासो कहता था कि सारी कलाएँ दुःख की संतति हैं।
सोशल मीडिया पर अपने रचनाओं को लोगों द्वारा साझे किए जाने के अनुभव के बारे में पूछे जाने पर गीत का जवाब था कि कवि-लेखक-कलाकार किसी के बनाए नहीं बनता न किसी के बिगाड़े बिगड़ता है।
लिखने क्रम में समाज का उनके ऊपर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चतुर्वेदी ने कहा कि हम समाज से कटकर नहीं लिख सकते हैं। हम लिख एकांत में रहे होते हैं लेकिन बात समाज की कर रहे होते हैं।
चतुर्वेदी ने अपनी कविताओं तथा अपने उपन्यास ‘सिमसिम’ के एक अंश का भी पाठ किया। श्रोताओं के सवालों और उनके जवाबों की बदौलत यह आयोजन बहुत जीवंत हो गया। कलम हिंदी भाषा और साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए प्रभा खेतान फ़ाउंडेशन का एक अनूठा प्रयास है जो अपनी भाषा अपने लोग की सोच को बढ़ावा देता है। चार दशक से भी अधिक समय से प्रभा खेतान फ़ाउंडेशन साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में श्रेष्ठ काम करने में संलग्न है और दुनिया भर के 40 से अधिक शहरों में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करता है। अपने इसी प्रयास के तहत फ़ाउंडेशन राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्तरों परकलम के अलावा किताब, लफ़्ज़, एक मुलाक़ात विशेष, सुर और साज, आख़र जैसे कार्यक्रमों का आयोजन भी करता है।