तालीम की वजह से औरत के सृजन का दायरा बढ़ाः डॉ नुसरत मेहदी

डॉ नुसरत मेहदी प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा रेख़्ता के सहयोग से आयोजित ऑल इंडिया लफ़्ज़ के पहले कार्यक्रम में श्रोताओं से मुखातिब थीं। आरंभ में उनका स्वागत अहसास वूमेन राजस्थान और मध्य भारत की समन्वयक अपरा कुच्छल ने किया। उन्होंने भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए फाउंडेशन की गतिविधियों की चर्चा की और उर्दू, अरबी, फारसी भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए सहयोगी रेख़्ता के प्रयासों और प्रायोजक श्री सीमेंट की सराहना की। कुच्छल ने डॉ मेहदी के परिचय के साथ ही आगे की चर्चा के लिए आराधना प्रधान को आमंत्रित किया। अहसास वूमेन एनसीआर प्रधान मसि इंक की संस्थापक-निदेशक और ‘मुक्तांगन&’ की न्यासी हैं।

प्रधान ने मेहदी के ही एक शेर के साथ उनसे उर्दू, अंग्रेजी, फारसी इन तीनों जबान में एम.ए. करने की वजह पूछी? मेहदी ने कहा, "भाषा पुल का काम करे, तोड़ने का काम न करें। मैं जहां भी गई, वहां की जबान, तहजीब और अदब को समझने की कोशिश की। शोध का विषय निर्भया जैसे हादसों के बाद जो ट्रामा पैदा हुआ, उस पर रखा। अपनी पहली रचना के बारे में बताते हुए कहा कि यह एक कहानी थी, नाम था ‘मैं क्या हूं। मैं तब दसवीं कक्षा में थी, मैंने रेडियो पर यह कहानी पढ़ी। मेरे परिवार में साहित्य का माहौल था। मैं अभी विद्यार्थी ही हूं।

अध्ययन से आपका लेखन और व्यक्तित्व दिखाई देता है। आपके पसंदीदा शायर और लेखक? के उत्तर में मेहदी ने कहा, मैंने गालिब, फैज सभी को पढ़ा। पर आम फहम जबान में बशीर बद्र साहब का लिखा, उनका कलाम सबसे प्रभावित हुई। मैंने शायरी में उन्हें ही आदर्श माना। मैं मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी में उनके साथ सचिव रही। उनसे बहुत कुछ सीखा। प्रधान के अनुरोध पर डॉ मेहदी ने सुनाया-

इश्क में मजनूं-ओ-फ़रहाद नहीं होने के
ये नए लोग हैं बर्बाद नहीं होने के

ये जो दावे हैं मोहब्बत के अभी हैं जानां
और दो-चार बरस बाद नहीं होने के

क्या कहा तोड़ के लाओगे फ़लक से तारे
देखो इन बातों से हम शाद नहीं होने के…

एक सवाल के उत्तर में डॉ मेहदी ने कहा कि दिल्ली, लखनऊ, मुंबई में शायरी के बहुत चाहने वाले हैं। पर देश में बहुत सारे सुल्तानपुर, बुरहानपुर जैसे छोटे शहर हैं, जहां आम अवाम भी मुशायरे को समझती है। ये शौकीन लोग आज भी किताबें मांगते हैं। जबकि देश के बाहर के मुशायरों में केवल चुने लोग होते हैं। इसलिए मैं अपने हिंदुस्तान के मुशायरों की तारीफ करूंगी। बीसवीं सदी की शायरी में औरत के दुख दर्द और बाद में सारा आसमान खुला होने के सवाल पर डॉ मेहदी ने कहा,एक जमाने में औरत को अपनी जबान में शायरी की इजाजत नहीं थी। शिक्षा के बढ़ने के साथ उन्हें अपने अंदर के सलाहियत का भान हुआ। कुछ पुरुष भी साथ थे। धीरे-धीरे उसने अपने संघर्ष से अपने आपको दर्ज किया। तालीम इसकी वजह बनी, उसके सृजन का दायरा बड़ा हुआ। वह बराबर से पढ़ने लगी। उसने विरोध के बावजूद मर्द का पूरक बनकर काम किया। इसमें हमारी पीढ़ी की भूमिका अहम है। डॉ मेहदी ने कहा कि प्रतिभा जेंडर की मुहताज नहीं है। फिर भी लेखन, प्रकाशन, मंच पर स्त्री- पुरुष को लेकर आज भी भेद है। डॉ मेहदी ने कुछ अशआर भी सुनाए-

आप शायद भूल बैठे हैं यहां मैं भी तो हूं
इस ज़मीं और आसमां के दरमियां मैं भी तो हूं…
***
अक्ल को भूल जा कुछ देर तो नादानी कर
तू मेरे ख्वाब उठा इनकी तो निगेबानी कर

डॉ मेहदी ने म. प्र. उर्दू अकादमी द्वारा तलाशे जौहर कार्यक्रम की चर्चा की, जिससे हिंदी और उर्दू के कई कलाकार सामने आए। उन्होंने अपनी यह नज़्म भी सुनाई-

ख़ाना-वीरान तो नहीं हो तुम
मुझसे अनजान तो नहीं हो तुम
इतने बेध्यान तो नहीं हो तुम
आप करो गिले शिकवे
कोई मेहमान तो नहीं हो तुम
इश्क में काम अक्ल से लोगे
इतने नादान तो नहीं हो तुम…

आज के शायरों में उन्होंने शाहनवाज अंसारी, सलमा शाहीन, मलका नसीम, जायरा निगार जैसे युवा शायरों की तारीफ की और रेख़्ता के प्रयासों की तारीफ की। सवाल जवाब के सत्र में डॉ मेहदी ने एस शाकिर अली, जसवीर नैय्यर, डॉ नीता सिंह, शुचि शुक्ला, निलिमा देशपांडे और डॉ वेदुला रामालक्ष्मी के सवालों के उत्तर में बताया कि रवायती शायरी खुद को मनवाने की शायरी थी, उसके बाद बगावती शायरी आई कि पुराने खयालात को मानने के बावजूद हम ऐसा करेंगे, क्योंकि यह हमारी पहचान है, और आज बराबरी की शायरी है। इस सवाल पर कि क्या इश्क में वाकई आदमी निकम्मा हो जाता है? डॉ मेहदी ने कहा कि एक जमाने में इश्क था और शायरी करते थे, तो वही करते थे। पर अगर आज आप फनकार हैं तो जिंदगी के तकाजे भी पूरा करने होते हैं। मेरा कहना है कि कोई भी ताल्लुक है, इश्क है तो वह हमारी कमजोरी क्यों बने, वह ताकत क्यों न बने। मेहदी ने अपनी चर्चित पुस्तकों साया साया धूप, मैं भी तो हूं, फरहाद नहीं होने के तथा निबंध संग्रह आप कब हंसेंगे कामरेड का उल्लेख किया। डॉ मेहदी ने मीर अनीस की शायरी को भी याद किया।

लफ़्ज़ के प्रायोजक हैं श्री सीमेंट। रेख़्ता और अहसास वूमेन का सहयोग मिला।